أنا : لم تغادر ؟
هو : لم نأيت أنت قبلي ؟
أنا  : كنت أحسبها جنة 
هو : أليست كذلك ؟
أنا :  في الظاهر فقط 
هو : ماذا ينقصك هناك إذن ؟
أنا  : دفء الوطن 
هو : لكن كما ترى نحن هنا عراة! 
      ألم يصلك صدى صراخي ؟
      أم أنك مثلهم لحالي لا تبالي ؟
أنا  : في الحقيقة صراخك كان مدويا..آلمني..أعادني عشرين عاما إلى الوراء!








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